अध्यक्ष का परिचय
मेरी 30 वर्षों की समाज सेवा यात्रा
मेरी 30 वर्षों की समाजसेवा की एक कहानी है जो अत्यंत रोचक है। बात इस प्रकार है कि मैं दिसंबर, 1989 में कुछ पुस्तकें और कुछ कपड़े लेकर बरेली कॉलेज के हॉस्टल से भारतीय प्रशासनिक अधिकारी बनने के लिए दिल्ली आया था। जब मैं संघ लोक सेवा आयोग में परीक्षा पत्र दाखिल करने गया तो देखा कुछ लोग हिंदी का तंबू ताने बैठे हुए हैं, उनमें एक व्यक्ति मुझे कुछ परिचित लगे। जब मैंने उनसे पूछा तो उन्होंने अपना नाम राजकरण सिंह बताया, वे बाराबंकी के रहने वाले निकले। उनका जन्म सन 1954 ई, में हुआ था। मैं उनके पास बैठ गया।
राजकरण सिंह ने मुझसे पूछा कि यहां किसलिए आए हो, मैंने आने का प्रयोजन बताया कि मैं कलेक्टर बनने के लिए यहाँ परीक्षा की तैयारी करने के उद्देश्य से आया हूँ। राजकरण सिंह ने कहा कि हम तो तुम्हारी लड़ाई पहले से लड़ रहे हैं। आप इस अंग्रेजी के महा समुद्र से कैसे पार पाओगे? मेरी बात समझ में आई और मैं चोरी छुपे धरने पर बैठने लगा, राजकरण सिंह मुझे सामने नहीं आने देते थे।
राजकरण सिंह कहते थे कि तुम्हें सरकारी नौकरी करनी है इसलिए कभी मेरे साथ फोटो मत खिंचवाना मुझे पुलिस पकड़ कर ले जाये, उस समय तुम मुझसे नहीं मिलना। क्योंकि राजकरण सिंह उत्तर प्रदेश के विष्णुपुरा गांव जनपद बाराबंकी के रहने वाले थे, जो मेरे गृह जनपद बरेली से कुछ किलोमीटर पर है इसलिए उनके साथ मेरा बहुत गहरा लगाव था। उन्होंने हिंदी के लिए 16 वर्षों तक अनवरत संघ लोक सेवा आयोग के सामने आंदोलन चलाया और 29 दिनों का आमरण अनशन किया जो विश्व में भारतीय भाषा के लिए सबसे बड़ा आंदोलन माना जाता है। जब हिंदी आंदोलनकारियों ने राजकरण सिंह का साथ छोड़ दिया और वह सीता राम बाजार में रहने लगे तब सात सालों तक मेरे साथ रहे और परिवर्तन जन कल्याण समिति द्वारा आयोजित हिंदी कार्यक्रमों में कार्यक्रम के अध्यक्ष रहे।
25 अक्टूबर 2011 को संस्था की ओर से ‘राष्ट्र भाषा भारती‘ स्मारिका प्रकाशित करने के बाद वे विष्णुपुरा जाना चाह रहे थे उसी दिन यानी 25 अक्टूबर, 2011 की शाम को हमने साथ खाना खाया और उसके बाद उनके दर्शन नहीं हुए। मैं उनका अनुसरण करता रहा पढ़ाई भी की लेकिन भारतीय प्रशासनिक अधिकारी बनने में सफलता नहीं मिली। दिल्ली में रहकर कई और कोर्सेज किए पत्रकार बन गया और फिर परिवर्तन जन कल्याण समिति के नाम से 1999 में संस्था बनाई। 16 अगस्त 1988 से जो हिंदी का आंदोलन चला था वह दम तोड़ने लगा था। यह आंदोलन 2004 में समाप्त हुआ। हालांकि इस आंदोलन में तीन-तीन प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति शामिल हुए और वे सभी हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाना चाहते थे। सभी चाहते थे कि भारतीय प्रशासनिक सेवाओं की परीक्षाएं हिंदी एवं सभी भारतीय भाषाओं में हो लेकिन यह एक भ्रम बना रहा और यह आंदोलन अपनी बहु आयामी छाप नहीं छोड़ पाया। इसके लिए कई लोगों ने बड़ी-बड़ी कुर्बानियां दीं, विज्ञान भवन में हिंदी आंदोलनकारियों की पिटाई भी हुई श्री पुष्पेंद्र चैहान लोक सभा की दीर्घा से नीचे कूद गए।
राजकरण सिंह को कितने बार थाने में बंद किया गया, फिर छोड़ा फिर बंद किया गया यह क्रम चलता गया और आखिर राजकरण सिंह हिंदी का दर्द लेकर इस दुनिया से 31 अक्टूबर 2011 को चले गए।
हिंदी आंदोलन के समय ही मेरी मुलाकात श्री अनिल शास्त्री (पूर्व प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री) के बेटे से हुई। मैं शास्त्री जी के जीवन से उस समय काफी प्रभावित हुआ और उनका जीवन दशर्न जानने के लिए उनके स्मारक ट्रस्ट जनपथ पर काफी समय तक अपनी सेवाएं दी। लाल बहादुर शास्त्री की समाधि पर मेरी भेंट पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह से हुई और उसी संबंध में पहली बार संसद भवन भी गया। 4 दिसंबर 2012 का दिन मेरे लिए राष्ट्रीय राजनीति में छा जाने का एक सुनहरा अवसर था। श्री श्याम रुद्र पाठक के साथ मुझे श्रीमती सोनिया गांधी ;उस समय यूपीए की चेयरपर्सनद्ध के आवास 10 जनपद के सामने ‘न्यायालय की भाषा हिंदी‘ हो विषय को लेकर धरने पर बैठना था। क्योंकि उस समय के कांग्रेस पार्टी के दिग्गज नेता श्री ऑस्कर फर्नांडिस और श्रीमती सोनिया गांधी के विश्वासपात्र से मेरी व्यक्तिगत मित्रता थी। ऑस्कर जी मेरे कई कार्यक्रमों में अतिथि बनकर आ चुके हैं इसीलिए मैंने उनके दरवाजे पर धरना देना उचित नहीं समझा, लेकिन श्याम रुद्र पाठक अपनी जिद पर अड़ गए और धरने पर बैठ गए। उसी दिन शाम को पुलिस पकड़ कर श्याम रुद्र पाठक को तुगलक रोड थाने ले गई। थाने में जब मेरी मुलाकात श्याम रुद्र पाठक से हुई तो पाठक जी ने कहा कि देशपाल तुमने मुझे धोखा दिया। मैंने कहा भैया धोखा तो नहीं दिया है पर यह समय धरने पर बैठने के लिए मेरे लिए अनुकूल नहीं है। मैं हिंदी की लड़ाई के लिए और अधिक समय का इंतजार करना चाहता हूँ। श्याम रुद्र पाठक अकेले ही धरने पर बैठते रहे। रात को पुलिस पकड़ कर रोज तुगलक रोड थाने ले जाती रही। मैं उनसे मिलने बराबर जाता रहा। लेकिन 18, जुलाई, 2013 का दिन आया जब तुगलक रोड थाने की पुलिस ने श्याम रुद्र पाठक को जेल भेज दिया। श्याम रुद्र पाठक ने जमानत के लिए अर्जी नहीं दी इसलिए उन्हें 5 दिनों तक जेल में रहना पड़ा।
आज के परिदृश्य में मैं देखता हूं कि यदि मैं धरने पर बैठता तो मैं भारत सरकार के द्वारा कभी भी इस्पात मंत्रालय में हिंदी सलाहकार समिति में नामित नहीं किया जाता। 4 दिसंबर 2012 से अच्छा दिन मेरे लिए 19 नवंबर 2016 आया जिस दिन मुझे इस्पात मंत्रालय की हिंदी सलाहकार समिति में विशेष आमंत्रित सदस्य नामित किया गया। इस्पात मंत्रालय में नामित होकर मैंने राजभाषा हिंदी कार्यान्वयन के लिए बहुत से सुझाव दिए जिन्हें अधिकतर स्वीकार कर लिया गया।
अक्टूबर 2015 में मेरी मुलाकात श्री रवि चाणक्य, नरेंद्र मोदी विचार मंच, के संस्थापक अध्यक्ष से हुई। रवि जी ने मुझ से प्रभावित होकर मुझे बहुत जल्दी महा सचिव संगठन घोषित किया और दक्षिण भारत ;द्रविड़ प्रदेशोंद्ध के प्रदेशों की जिम्मेदारी संगठन को खड़ा करने की मुझे दी। रवि जी के साथ कार्य करके संघ के बड़े-बड़े पदाधिकारियों से मिला। हालांकि इससे पूर्व में कई सांसदों का सलाहकार सचिव रह चुका था। मुझे संसद के प्रश्न बनाने का बहुत शौक है। इसलिए मैं शौक के तौर पर श्री राधा मोहन सिंह, सांसद, कैप्टन जयनारायण प्रसाद, निषाद,श्री रघुराज सिंह शाक्य, सांसद श्री कमल किशोर, सांसद श्री भुवनेश्वर प्रसाद मेहता, सांसद, श्री लक्ष्मण गिलुवा, सांसद एवं प्रदेश अध्यक्ष भाजपा, झारखंड, सदस्यों के संसदीय प्रश्न बनाने लगा।
इसी समय मैंने धार्मिक यात्राएं भी कीं हरिद्वार से लेकर मथुरा, बालाजी मेहंदीपुर, महाकालेश्वर उज्जैन, त्रंबकेश्वर, साईं बाबा, सिगनापुर नासिक, मीनाक्षी मंदिर मदुरई, रामेश्वरम, कन्याकुमारी, त्रिवेंद्रम, पद्मनाभस्वामी मंदिर, त्रिवेंद्रम, सबरीमाला, केरल के और कई मंदिर सोमनाथ, नागेश्वर, द्वारिका, पुरी उड़ीसा, जगन्नाथ, बाबा विश्वनाथ, औरंगाबाद, इंदौर, ओमकारेश्वर, चित्तौड़गढ़, उदयपुर, मसूरी, देहरादून की धार्मिक यात्राएं संपन्न हुई।
मित्रो धार्मिक, सामाजिक यात्राओं से, अपने राजनीतिक जीवन से, राजभाषा हिंदी आंदोलन से, जो कुछ भी सीखा, अब वह समय आ गया है कि आप सबको ;समाजद्ध को वापस करूं। इसी उद्देश्य को लेकर यह न्यास बनाया है और यह न्यास मंच के रूप में आप सबके हाथों में देता हूँ। आप इस मंच का प्रयोग शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक न्याय की नीतियों में बदलाव व समग्र विकास, राजभाषा से राष्ट्रभाषा हिंदी बनाने के लिए कर सकते हैं।